भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फुटकर शेर / ओम प्रकाश नदीम

236 bytes added, 09:27, 1 दिसम्बर 2014
हमें मालूम है रस्मन है ये सब कुछ मगर फिर भी,
मुबारक हो अन्धेरे में उजाले की तरफ़दारी ।
 
'''9.'''
 
भरे बाज़ार से अक्सर मैं, ख़ाली हाथ आता हूँ,
कभी ख़्वाहिश नहीं होती, कभी पैसे नहीं होते ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits