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राही अकेला / जेन्नी शबनम

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1
कोई तो होता
बेग़रज अपना
मानो सपना !
sanjh ka akash2
उदास स्वप्न
आसमाँ पे ठहरा
दर्द गहरा !
3
अकेलापन
खोया है भोलापन
कलेजा ज़ख़्मी !
4
बेग़रज हो
कोई अपना तो हो
कहीं भी तो हो !
5
तन्हा जीवन
भीड़ में गुम, जीता
अकेलापन !
6
हम भी तन्हा
चाँद सूरज तन्हा
गले लग जा !
7
खुद से नाता
खुद से ही की बातें
अकेला मन !
8
मन ने रचा
मन का ताना- बाना
मन ही जाना !
9
कैक्टस उगा
अकेलापन चुभा
कोई न जाना !
10
बहता रहा
दुःख का समंदर
जी के अन्दर !
11
हम अकेले
साथ सपने मेरे,
काहे का डर !
-0-
<poem>