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सुबह के हाथ अपनी शाम / किशोर काबरा
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10:18, 4 दिसम्बर 2014
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|रचनाकार=किशोर काबरा
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<poem>
ज़िंदगी की राह चलते थक गया हूँ,
साँस को कुछ मौत का विश्राम दे दूँ।
तुम ज़रा गंगाजली का मुँह झुकाना,
मैं सुबह के हाथ अपनी शाम दे दूँ।
</poem>
Sharda suman
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