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Kavita Kosh से
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हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ!हूँ।
मुझे देखते ही अरहरी लजाई,मनाया-बनाया,न मानी, न मानी,;उसे भी न छोड़ा-पथिक आ रहा था, उसी पर ढकेला,;हँसी ज़ोर से मैं, हँसी सब दिशाएँ,हँसे लहलहाते हरे खेत सारे,हँसी चमचमाती भरी धूप प्यारी,;बसंती हवा में हँसी सृष्टि सारी!हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ।हूँ!
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