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Kavita Kosh से
संतान को जन्म देने की प्रतीक्षा ..
अपने संतान को देती है जन्म
हर दुःख जाती है भूल ...
फिर कलेजे के टुकड़े को
लगाकर कलेजे से कराती है पान
अपने शरीर में संजोगे सारे पोषक तत्वों का ..
बेचारी !! अरे अपने लिए खाई थी क्या ?
गर्भ के नौ मास में ...
क्या पता नवग्रह की तरह होगा
कलेजे का भविष्य ...
मूक शैशव को मात्र दुग्ध पान की प्रतीक्षा
अबूझ समझ रोता भी है ..
रुलाता भी अपनी माँ को
जब नन्हें के आंसू को देख कोई तीसरा नहीं दौड़ता...
हाय री माँ ...
तेरी प्रतीक्षा से डोल रहा यह जहाँ..
है कोई मोल ...संतान नई भी किया प्रतीक्षा ..बचपन में नहलाने की .दूध पिलाने की ..
मातृहाथों से खाने की...
अब माँ हो गयी है बुढ़िया ..
अभी संतान कर रहे हैं प्रतीक्षा ....
माँ के ऊपर जाने की...