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गौतम-ख़्रीस्त / पाब्लो नेरूदा

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[[Category:स्पानी भाषा]]
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ईश्वर के नाम, ख़ासकर उसके पैग़म्बर यीशु यानी ख़्रीस्त के
 : लिखित पाठों में और मौखिक रूप से, 
अपना अर्थ खो चुके हैं, घिस चुके हैं
 और हमारी अपनी ज़िन्दगी की नदी-पट्टी पर जमा कर दिए गए हैं  :घुंघचियों के खाली खोलों की भांति । 
फिर भी / सारा रक्त बह चुका है जिनका / ज़ख़्मी पंखुड़ियों जैसे
 
प्रेम और भय के महासागरों के सन्तुलन
 
इन पवित्र नामों के स्पर्श से
 
हम अनुभव करते हैं कि कुछ बचा हुआ है :
 
एक गोमेद अधर
 
एक रंगदीप्त पदचिन्ह
 : अब तक झलमलाता हुआ रौशनी में । 
ईश्वर के नाम यद्यपि उत्कृष्ट और निकृष्ट
 
पवित्र और पतित लोगों द्वारा उच्चारे गए थे
 
काले और गोरों के द्वारा
 
ख़ूनियों-क़ातिलों के द्वारा
 
और नापाम के साथ धधकते पीले-भूरे उत्पीड़ितों के द्वारा,
 
जबकि निक्सन ने मौत की सज़ा पाए लोगों को
 
केन के हाथों धन्य किया,
 
समुद्र-तट पर छोटे-छोटे न-कुछ से पवित्र पदचिन्ह नज़र आने पर
 
लोगों ने रंगों का परीक्षण शुरू किया,
 
उम्मीद शहद की, संकेत यूरेनियम का
 
उम्मीद और संशय के साथ उन्होंने
 
एक दूसरे की हत्या करने या न करने
 
अपने-आप को क़तारबन्द करने
 
बिना रुके और आगे जाने
 
अपने आप को असंख्य करने की सम्भावनाओं का अध्ययन किया ।
 
हम, जो ख़ूनी बास, जलती लाशों और मलबे की चिरायंध छोड़ते
 : इन दौरों से गुज़र कर जीते रहे 
हम, जो उस दृश्य को भूल पाने में असमर्थ थे
 
अक्सर ईश्वर के नामों पर सोचने के लिए रूके हैं,
 
सदय हाथों उन्हें उठाया है,
 
क्योंकि उन्होंने हमारे पुरखों को
 
अरण्य में गूँजते सामगानों का
 
प्रश्नाकुल जिज्ञासाओं का
 
और विपत्तिकाल में संघबद्ध करने वाली स्तुतियाँ
 :अन्वेषित करने वालों का पुनर्स्मरण कराया, 
और अब
 
जहाँ वह आदमी रहता था
 
उसके सूने पड़े
 :खंडहरॊं को देखते हुए 
हम उन शिष्ट उपादानों की ओर संकेत करते हैं
 
जो नेकी और बदी के द्वरा गवाँ दिए गए ।
 
केन=आदम और हव्वा का पुत्र, जिसे नास्तिकों और धर्म-द्रोहियों को मौत के घाट उतारने का आदेश दिया गया था ।
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