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{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज कुमार झा
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|संग्रह=तथापि जीवन / मनोज कुमार झा
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इतनी कम ताकत ताक़त से बहस नहीं हो सकती अर्जी पर दस्तखत दस्तख़त नहीं हो सकतेइतनी कम ताकत ताक़त से तो प्रार्थना भी नहीं हो सकती
इन भग्न पात्रों से तो प्रभुओं के पाँव नहीं धुल सकते
फिर भी घास थामती है रात का सिर और दिन के लिए लोढ़ती है ओस
चार अँगुलियाँ गल गई पिछले हिमपात में कनिष्ठा लगाती है काजल।काजल ।</poem>
