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सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria

4,866 bytes added, 18:37, 13 अप्रैल 2008
प्रिय सुमित जी,
आप हिन्दी प्रेमी हैं, हिन्दी के भविष्य को लेकर चिन्तित रहते हैं, प्रूफ़-रीडिंग को लेकर परेशान रहते हैं, कविता-कोश में महत्त्वपूर्ण योग दे रहे हैं, हम सब लोगों की ग़लतियाँ पकड़ कर हमें बताते हैं और मैं हमेशा आश्चर्यचकित होता हूँ, आपकी यह सक्रियता देख-देख कर। हमेशा सोचता हूँ-- देखो, कितना होनहार लड़का है। लेकिन भाई सुमित जी, कुछ बातें ऎसी भी हैं जिन्हें लेकर मुझे अब आपको टोकने की ज़रूरत आ पड़ी है। आपने आज ही जो चिट्ठी ललित जी को 'सदस्य वार्ता' के अन्तर्गत भेजी है, मुझे लगता है कि आप उसमें शालीनता की सीमाएँ पार कर गए हैं।
हमारे कविता-कोश के एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और मेरे ख़याल से सबसे वयोवृद्ध सदस्य के लिए आपने जिस शब्द का उपयोग किया है, मुझे उस शब्द पर गहरी आपत्ति है। हमें कोई भी टिप्पणी करते हुए शिष्टाचार पर पूरा ध्यान देना चाहिए और अपने व्यवहार में विनम्रता का उपयोग करना चाहिए। अपने अति उत्साह में या अपने ज्ञान की श्रेष्ठता बघारने में इतना मतान्ध नहीं हो जाना चाहिए कि हम किसी दूसरे के सम्मान को चोट पहुँचाएँ। आप युवा हैं और कम्प्यूटर का आपका ज्ञान हमसे श्रेष्ठ है, इसके लिए हम आपके प्रशंसक हैं। हम तो, सुमित भाई अभी सीख ही रहे हैं।
हिन्दी भी हमने हिन्दी में काम कर-कर के ही सीखी है और अभी भी सीख रहे हैं। हिन्दी-सर्वज्ञ तो हम अभी भी नहीं बने हैं। ग़लतियाँ सबसे होती हैं। बहुत से शब्दों को ग़लत ढंग से लिखने की हम लोगों को आदत पड़ गई है। वह आदत धीरे-धीरे ही छूटेगी। यह भी हो सकता है कि न छूटे। आप हमारी ग़लतियों की तरफ़, हमारे अज्ञान की तरफ़ इंगित करते हैं, हम सभी सदस्य इसके लिए आपके प्रति हमेशा हृदय से आभार व्यक्त करते हैं। लेकिन भाई सुमित जी, किसी सदस्य के प्रति आगे से अशिष्ट और भौंडी भाषा का उपयोग आप नहीं करेंगे, इतनी आशा तो हम भी आपसे कर ही सकते हैं। आशा है, आप मेरी इन बातों का बुरा नहीं मानेंगे। आपका पत्र पढ़कर मेरे मन में जो विचार तत्काल आए हैं, उनसे आपको अवगत करवाना भी मैं अपना कर्त्तव्य समझता था, बस इसीलिए इतना-कुछ लिख गया हूँ। आप स्वस्थ-प्रसन्न होंगे। हार्दिक मंगलकामनाओं के साथ...।
सादर
'''--[[सदस्य:अनिल जनविजय|अनिल जनविजय]] १०:३०, १३ अप्रैल २००८ (UTC)''''
 
 
सुमित जी,
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