भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
छान कर रख सकती थी
तुम उनमे से भी उम्मीदों के
अनगिनत चंन्द्रमा ...
गर धैर्य के अंबर में तुमने
मेरी स्मृतियों को पसारा होता...
वही का वही
मेरी जीभ और तेरी साँसे
चासनी आज भी वही का वही ...
प्रेम के रंग को भी
बदलने से रोका हमने...