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|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी
}}
{{KKCatNazm}}<poem>अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो <br>मुझ से बिखरे हुये गेसू नहीं देखे जाते <br>सुर्ख़ आँखों की क़सम काँपती पलकों की क़सम <br>थर-थराते हुये आँसू नहीं देखे जाते <br><br>
अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर <ref>सपनों का आलिंगन</ref> में भी आया न करो <br>छूट जाने दो जो दामन-ए-वफ़ा छूट गया <br>क्यूँ ये लग़ज़ीदा ख़रामी <ref>सोच-सोच के चलना </ref>ये पशेमाँ नज़री <brref>पछतावे से भरी निगाह</ref>तुम ने तोड़ा नहीं रिश्ता-ए-दिल टूट गया <br><br>
अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो <br>मेरी आहों से ये रुख़सार <ref>गाल </ref> न कुम्हला जायें <br>ढूँडती ढूँढती होगी तुम्हें रस में नहाई हुई रात <br>जाओ कलियाँ न कहीं सेज की मुरझा जायें <br><br>
अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो <br>मैं इस उजड़े हुये पहलू में बिठा लूँ न कहीं <br>लब-ए-शीरीं <ref>मधुर होंठ</ref> का नमक आरिज़-ए-नमकीं की मिठास <brref>नमकीन गाल </ref>की मिठास अपने तरसे हुये होंठों में चुरा लूँ न कहीं <br><br><br/poemआग़ोश-ए-तसव्वुर=सपनों का आलिंगन ; लग़ज़ीदा ख़रामी=सोच-सोच के चलना ; पशेमाँ नज़री=पछतावे से भरी निगाह ; रुख़सार=गाल ; लब-ए-शीरीं=मधुर होंठ ; आरिज़-ए-नमकीं=नमकीन गाल<br><br>{{KKMeaning}}
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