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चढ़ी हिडोरैं सी रहै, लगी उसाँसनु साथ।।
भूषन भार सँभारिहै, क्यौं इहि तन सुकुमार।
सूधे पाइ न धर परैं, सोभा ही कैं भार।। सकिहै सँभारि कैसैं अभरन भार यापैं आभा हूँ कै भार न सँभार्यौ तन जात है।।
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