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|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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सन्नाटा वसुधा पर छाया,
नभ में हमनें कान लगाया,
फ़िर भी अगणित कंठो का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं
कहते हैं तारे गाते हैं
सन्नाटा वसुधा पर छाया,<br>नभ में हमनें कान लगाया,<br>फ़िर भी अगणित कंठो का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं<br>कहते हैं तारे गाते हैं<br>  स्वर्ग सुना करता यह गाना,<br>पृथ्वी ने तो बस यह जाना,<br>अगणित ओस-कणों में तारों के नीरव आंसू आते हैं<br>कहते हैं तारे गाते हैं<br> 
उपर देव तले मानवगण,<br>नभ में दोनों गायन-रोदन,<br>राग सदा उपर को उठता, आंसू नीचे झर जाते हैं<br>
कहते हैं तारे गाते हैं
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