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Kavita Kosh से
अनोखी हवा हूँ।<br>
बड़ी बावली हूँ,<br>
बड़ी मस्त्मौला।मस्तमौला।<br>
नहीं कुछ फिकर है,<br>
बड़ी ही निडर हूँ।<br>
उतरकर भगी मैं,<br>
हरे खेत पहुँची -<br>
वहाँ, गेंहुँओं गेहुँओं में<br>
लहर खूब मारी।<br><br>
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