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आस्था / राजू सारसर ‘राज’

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|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’
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<poem>

म्हारी
आस्था माथै
वै’म कर’र
करै अनरथ
क्यूं बिरथा
मिंदरां-मसीतां-गिरजां में
माथौ निवावणै सूं ई फगत
कोई नीं बण जावै आसतिक
हो जावै पण ष्
मिणख संकड़ै
दायरै में कैद
तण जावै
माथौ गुमेज सूं
निज रौ
देव लागै
बडौ दूजां सूं
म्हूं
सीकारू
उण परम सगती
सरबसगतीमान रो
असतितव
माणस रै माणस
हौवणै में
अर
निवा देऊं माथौ
पूरी सिरधा सूं।
नेह-न्हाया
सबदां री पराथना साथै
जिण रो
कोई थान कोनी
कोई ऐनाण कोनी
आतमा सूं आळगौ।
</poem>
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