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{{KKRachna
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’
}}
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<poem>
म्हारै सारू
लोग कांई
समझै, कांई सोचै
नीं जाणनौं चावूं।
म्हूं जाणूं
फगत जिण रो खावूं
उण रा गीत गावूं।
</poem>
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म्हारै सारू
लोग कांई
समझै, कांई सोचै
नीं जाणनौं चावूं।
म्हूं जाणूं
फगत जिण रो खावूं
उण रा गीत गावूं।
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