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वरदान / राजू सारसर ‘राज’

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|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’
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<poem>
अष्टभुजी परमेसरी
अैक पुरूस परवाण
सात देवी सात किन्यां
सातां रो सतकार......।
रोजीनां पढूं
ओ ई मंतर
घणैं नैठाव सूं
राखूं नौरता निराहारा
कंजकां रा पगल्या धोय’र
करूं पूजण
जीमाऊं बैठा’र आंगणैं
सालीणौं ई
जाऊं जात ठेठ पल्लू ई
माता जी राजी होय’र
देवैला स्यात वरदान
जलमण रो घरां
अैक बेटो।
</poem>
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