भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हकहीण / राजू सारसर ‘राज’

831 bytes added, 08:21, 29 जनवरी 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
सरकार बाटै
सींत में
लेपटोप अर टेबलेट
पच्छै ई
करै हाकौ थूं बावळां ज्यूं
पेट नै रोटी
हाथां नै काम सारू
अबै थानैं
हाकौं करण रो हक नीं है
आं गैली बातां नैं छोड
होज्या ग्लोबल
देख सरी दुनिया पूगगी
कितरी’क आगै।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits