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"कोमल किसलय के अंचल में,
नन्हीं कलिका ज्यों छिपती-सी,सी।
गोधूली के धूमिल पट में ,
दीपक के स्वर में दिपती-सी।
मंजुल स्वप्नों की विस्मृति में,
मन का उन्माद निखरता ज्यों-ज्यों।
सुरभित लहरों की छाया में,
बुल्ले का विभव बिखरता ज्यों-ज्यों।
वैसी ही माया में लिपटी
अधरों पर उँगली धरे हुए,हुए।
माधव के सरस कुतूहल का
किन इंद्रजाल के फूलों से
लेकर सुहाग-कण-राग-भरे,भरे।
सिर नीचा कर हो गूँथ माला
जिससे मधु धार ढरे?-------------------------------------
पुलकित कदंब की माला-सी
पहना देती हो अंतर में,में।
झुक जाती है मन की डाली
वरदान सदृश हो डाल रही
नीली किरणों से बुना हुआ,हुआ।
यह अंचल कितना हलका-सा
सब अंग मोम से बनते हैं
कोमलता में बल खाती हूँ,हूँ।
मैं सिमिट रही-सी अपने में
स्मित बन जाती है तरल हँसी
नयनों में भरकर बाँकपना,बाँकपना।
प्रत्यक्ष देखती हूँ सब जो
मेरे सपनों में कलरव का संसार संसार आँख जब खोल रहा,रहा।
अनुराग समीरों पर तिरता था
अभिलाषा अपने यौवन में
उठती उस सुख के स्वागत को,को।
जीवन भर के बल-वैभव से
किरणों का रज्जु समेट लिया
जिसका अवलंबन ले चढ़ती,चढ़ती।
रस के निर्झर में धँस कर मैं
छूने में हिचक, देखने में
पलकें आँखों पर झुकती हैं,हैं।
कलरव परिहास भरी गूजें
संकेत कर रही रोमाली
चुपचाप बरजती खड़ी रही,रही।
भाषा बन भौंहों की , काली-रेखा-सी
रेखा-सी भ्रम में पड़ी रही।
तुम कौन! हृदय की परवशता?
सारी स्वतंत्रता छीन रही,रही।
स्वच्छंद सुमन जो खिले रहे
जीवन-वन से हो बीन रहीरही।"
संध्या की लाली में हँसती,
उसका ही आश्रय लेती-सी,सी।
छाया प्रतिमा गुनगुना उठी
"इतना न चमत्कृत हो बाले
अपने मन का उपकार करो,करो।
मैं एक पकड़ हूँ जो कहती
अंबर-चुंबी हिम-श्रंगों से
कलरव कोलाहल साथ लिये,लिये।
विद्युत की प्राणमयी धारा
मंगल कुंकुम की श्री जिसमें
निखरी हो ऊषा की लाली,लाली।
भोला सुहाग इठलाता हो
हो नयनों का कल्याण बना
आनन्द सुमन सा विकसा हो,हो।
वासंती के वन-वैभव में
जिसका पंचम स्वर पिक-सा हो,हो।
जो गूँज उठे फिर नस-नस में
मूर्छना समान मचलता-सा,सा।
आँखों के साँचे में आकर
रमणीय रूप बन ढलता-सा,सा।
नयनों की नीलम की घाटी
जिस रस घन से छा जाती हो,हो।
वह कौंध कि जिससे अंतर की
शीतलता ठंडक पाती हो,हो।
हिल्लोल भरा हो ऋतुपति का
गोधूली की सी ममता हो,हो।
जागरण प्रात-सा हँसता हो
जिसमें मध्याह्न निखरता हो,हो।
हो चकित निकल आईसहसा
उस नवल चंद्रिका-से बिछले जो
मानस की लहरों पर-से,से।"