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|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
म्हारै मन रा मीत
थारी छिब
म्हारी आत्मा पर
जुगां जुगां तांई
मण्ड्योड़ी रहसी
थारा बोल
थारी बात
थारौ सोच
थारौ साथ
म्है बरसां बरस भूल नीं पाऊँला
अर जद जद भी
इण दुनियां में आऊंला।
म्हारै रच्योड़ा गीत
थारै मन में जरूर गुंजाऊंला।
म्हारै अन्तस रा उजास
जद म्हनै थारी ओळूं आवै
तो म्हारै नैणां सूं छाळकै जळ
अर मन में हुवै
कसमसाट
थारै सूं मिलणै री
उण बखत मन ने
समझावण सारू
उठा उठा’र देखूं
थारी सैनाण्यां
थारी निशाण्यां
अर होठां सूं लगा लूं
उण सब ने
एक एक कर।
</poem>
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