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|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
जद कदे भी देखूं हूँ
म्हारै गांव री पाळ पर पड़िया
ऊँधा-सीधा
आडा-तिरछा भाठा ने
जिण रौ एक दूजै सूं
कीं रिश्‍तौ
कोई जुड़ाव
जोयां नीं लाधै।
 
पाणी री एक बूंद पर
दूजी बंद न्हांखी
दोनूं रिळमिळ’र
बणगी पाणी री
एक नवी बूंद।
 
कदे कदे सोचूं
पाणी रै टोपै ज्यूं
भाठै ने भी आवतौ
रिळमिळ’र एक हुवणौ तो
कितरौ आछौ हुवतौ।
</poem>
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