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खांचा / संजय आचार्य वरुण

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|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
एक खांचादार
मोटी अलमारी ज्यूं
हुवतौ जाय रैयौ है
म्हारौ सैर।
 
हर आदमी
बड़़ बड’र बैठ रह्यौ है
आप आप रे खांचा मांय
आ सोच’र
के अबै नीं निकळणौ है
म्हानै म्हारै
खांचै ने छोड’र।
 
म्हनै लखावै
खांचा में बैठां मिनखा रै
मन में भी
पड़ रह्या है
सायत केई खांचा।
</poem>
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