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मेघमाळ (1) / सुमेरसिंह शेखावत

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<poem>
अगन-झळां उकळै ऊनाळो, अवनी बणी अलाव।
ओ असाढ़ रा मेघ अचपळा, अब तो बरसण आव।
धार्यो लुवां दुधारो।
मारूभोम-मसाणां-झुळसे जीव-जमारो।।1।।

धप्पड़बोज धुकै धर-धूणी, लूवां लागी लाय,
आापत खुद ल्यो छांव अटकळे, बणचर रह्या बिराय।
अंबर अरन अमूझै।
सूनसट्ट सरणाटो, बिधना हाल न बूझै ।।2।।

मरू रो जीवण बण्यो मिरग-जळ, खळक तिंवाळा खाय।
भळ मेटण ब्रिख-भाण भूंजिया-तन-मन तेज तपाय।
बेगा आवो बीखां,
धर-रूकमण दुखियारी-ओ-घण-स्याम अडीकां।।।3।।

हिरणां-हेंत, हुसेर-हिलोळां, टीबड़ियां री टेर।
काळ बिधूंसण आव कळायण, घम्मघमंतै घेर।
जीवट री जळ-जादी।
खितिज-निलाट खिवंती-ऊमट दिस उतरादी।। 4।।

पलक-पांवड़ां मेघ पधारो, मुरधर मनां मंगेज।
पावस तनैं पोढणो पड़सी, सूळां-धूळां सेज।
थां बिन सूनी थळियां।
बेगा जळ बरसावो, बी‘‘दै सूकी बणियां।। 5।।

आबू इण मुरधर री अळका, भाखर ऊंचै भाळ।
थकिया-मांदा जे होवे थे, थमज्यो चिनेक ताळ।
बरस्या मत पण बो’’ळा।
मगरै तणां मारगां-भटकै मन रा भोळा।। 6।।

आण समो ऊंचो आड़ावळ-मुरधर री मरजाद।
गरवीलो चितोड गढां मे-अरियां रो अपवाद।
निरख्या वां नैं नैणां।
घाटी-घाटी गरज्या-बळिदानां रै बैणां।। 7।।

बिखम थळां बूंदी गढ़ बांको, हाडां तणी हुंसेर।
तीज-तिंवारा बठै जा टूठया, आखो साथ उछेर।
झुक-झुक नम्या जुहारां।
मुजरां रै मिस मेघा-गरज्या गिर-गिगनारां।।8।।

सीकर बरस्या सदा सुंवांरै, आधै दिन अजमेर।
सावण मास सुनंगी संभया, बूठया बीकानेर।
लंघण कर्या न लंबा।
थळियां बस थुथकार्या बाढ्या घणा न बंबा।।9।।

कूंटां खितिज तणी कजराळी, कांठळ उमटी कोय।
धररायो ल्यों आज धराऊ, दाळद देसी धोय।
झांकै बीज-झबूकां।
गगन-लोक गारणावै, धूजै धरण धडूकां।।10।।
</poem>
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