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मेघमाळ (2) / सुमेरसिंह शेखावत

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<poem>
चोजां मन-मोजां चिड़कलियां, न्हावै रेत-नहाण।।
अपस पतंगा मरण-उचाळै,उठ-उठ भरै उडाण।
ओळख लगन अगाऊ ।
मंडसी मेघ मोकळा-मोत्यां मेह मचाऊ।।11।।

‘‘पिव-पिव’’-रहया पुकार पपैया, मोर करै मनवार।
अपळक निजर निहारै ऊंची आंखड़ल्यां अणपार।
धारो मेघ धराऊ।
अगवाणी मिस उडिया, बध-बध आज बधाऊ।।12।।

मूसळधारां-मीठी मारां, ओसरियो असमान।
बण-ठण आई बिरखा बनड़ी, मारू-घर-मिजमाान।
हाळीड़ा हरखासी।
थावर करी थरपना, सांतू दिन सरसासी।।13।।

काजळबरणी कांठळ राची, माची लोपालोप।
धरती पर अंबर रो राजा-इन्दर करियो कोप।
धराऊ मारै हेला
बीजळियां री जोत-बटाऊ हेरै गेला।।14।।

धोरां री धरती पर ल्याई-बिरखा नवी बहार।
तिणकै-तिणकै में बापरियो-जीवण आज अपार।
केळां करै जमारो।
जंगळ-मंगळ होयो-मुरधर मुळकै सारो।।15।।

सांभळियो धण सूड़, सायबो-आंसगली अळसोट।
बडा-बडेरा हळिया बावै, घेरै डांगर घोट।
बीजा लोग बिडावा।
बाजै खेत बीजिया, ऊसर अड़क-अड़ावा।।16।।

डब-डब भरिया छीलर-डाबर, जळविहंगा-रव जोर।
हर्यो-भर्यो धरती रो आंचळ, आभो लोरांलोर।
आई रूत अलबेली।
जोबन-घट छळकाती-धण ज्यूं नवी नवेेली।।17।।

घोर घटा घूमड़ै उतरादी, ख्ंिावै खितिज री पाळ।
इन्दर राजा घररावै जद-कांपै आळ-पाताळ।
बोलै मोर सुरंगा।
जळहर ऊंचा चढै़, धरण पर उळकै गंगा।।18।।

झिरमिर-झिरमिर मे‘‘वो बरसै,घटा घरी घणघोर।
च्यारूंमेर खितिज पर जळहर-चूमै भू रा छोर।
अधरां अधर धरील्या।
ताल-तळाई सारा पोळांपोळ भरील्या।।19।।

बिरखा-बनड़ी बणी बावळी, करसी फैल अनेक
फेरां पै’’ली छोड़ सुरंगा, कर्या सांवळा भेख।
चंवरी देख रिसाई।
बाद करै बादीली मानै नहीं मनाई।।20।।
</poem>
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