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|रचनाकार=सुमेरसिंह शेखावत
|संग्रह=मेघमाळ / सुमेरसिंह शेखावत
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<poem>
ओरां रै घर लेवण आया, बैनड़ल्यां रा बीर।
बिन बीरै री सोनल बाई, धरै न हिवड़ै धीर।
पीवर आधो-पूणो।
मायड़ कियां मंगावै-बाबल हेत बिहुणो।।41।।
नो लख नखत जड्यो नखराळो।इन्द्र्र-धणख उणियार
लेर्यो ओढ़ सोडसी लजवण-सबड़क घूंघट सार
हींडै हेत-हिंडोळै।
छांटां-छोळ-छंछोळां, झड़ में रूप झिकोळै।।42।।
आयो तीज-तिंवार, तीजण्यां-हीडै रूंखां-डाळ।
कुवा-बावड़ी छोड कामण्यां, जावै पोखर पाळ।
कामणगारो मरूधर।
जणी-जणी आभल सी, खींवो रीझै कुण पर ?।।43।।
नवीनवेली धण अलबेली, पणघट री पणिहार,
गजगामण बण मनड़ो मोवै, चालै हळवै भार।
पायल बाजे छिम-छिम।
सावण मास सुरंगो, बूंदां बरसे रिमझिम।।44।।
नणदल रूपवती पर देखो, रीझै आयो गांवं
चंदाबदनी गोर-निछोरी, चनणा बाइ्र नांव।
रामू बणियो जण-जण।
लाजै अखनकंवारी जोबन निखरै छण-छण।।45।।
बाबल नंद जसोदा मायड़, कामधेन सी गाय।
कान-कंवर सो बीरो, भावज-रूकमण सी परणाय।
जमना बैवै दर-दर।
अै बर आज तीजण्यां-मांगै बिणती कर-कर।।46।।
तीज तिंवार पाछलै सोपै, आज मिलण रो कोल।
दूर देस सू आया पिवजी, धण दरवाजो खोल!
भीजै खड्या बारणै।
मोज्यां मे’वो बरसै प्रीत आंगणै।।47।।
‘बूढ’ बायरै सूर्यो बदळै, आमी-आमी आळ।
आठूं पो’रां झड़ियां उलळै, खळभळ खळकै खाळ।
इण रो अंत न अेढो।
मन-माने री मंजलां-मारग टेढ़ो-मेढ़ो।।48।।
खळखोटा न्हायी धर-खोड़ां-राचै बाळू रेत।
बाजरियां नीलावै, बेलां-खिरै थळी रा खेत।
निपजै नाज निनाणां
खड़ियां रूखळै खेती, बळद्या बिकै बिनाणां।।49।।
धन-धन अे धोरां री धरती, ऊंची थारी आण!
सोसै समद, निरजळा सरसै, पुरसारथ रै पाण।
काया खजै न काळां।
मस्तक जस-नभ मूकै, पत रा पग पाताळां।।50।।
</poem>
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ओरां रै घर लेवण आया, बैनड़ल्यां रा बीर।
बिन बीरै री सोनल बाई, धरै न हिवड़ै धीर।
पीवर आधो-पूणो।
मायड़ कियां मंगावै-बाबल हेत बिहुणो।।41।।
नो लख नखत जड्यो नखराळो।इन्द्र्र-धणख उणियार
लेर्यो ओढ़ सोडसी लजवण-सबड़क घूंघट सार
हींडै हेत-हिंडोळै।
छांटां-छोळ-छंछोळां, झड़ में रूप झिकोळै।।42।।
आयो तीज-तिंवार, तीजण्यां-हीडै रूंखां-डाळ।
कुवा-बावड़ी छोड कामण्यां, जावै पोखर पाळ।
कामणगारो मरूधर।
जणी-जणी आभल सी, खींवो रीझै कुण पर ?।।43।।
नवीनवेली धण अलबेली, पणघट री पणिहार,
गजगामण बण मनड़ो मोवै, चालै हळवै भार।
पायल बाजे छिम-छिम।
सावण मास सुरंगो, बूंदां बरसे रिमझिम।।44।।
नणदल रूपवती पर देखो, रीझै आयो गांवं
चंदाबदनी गोर-निछोरी, चनणा बाइ्र नांव।
रामू बणियो जण-जण।
लाजै अखनकंवारी जोबन निखरै छण-छण।।45।।
बाबल नंद जसोदा मायड़, कामधेन सी गाय।
कान-कंवर सो बीरो, भावज-रूकमण सी परणाय।
जमना बैवै दर-दर।
अै बर आज तीजण्यां-मांगै बिणती कर-कर।।46।।
तीज तिंवार पाछलै सोपै, आज मिलण रो कोल।
दूर देस सू आया पिवजी, धण दरवाजो खोल!
भीजै खड्या बारणै।
मोज्यां मे’वो बरसै प्रीत आंगणै।।47।।
‘बूढ’ बायरै सूर्यो बदळै, आमी-आमी आळ।
आठूं पो’रां झड़ियां उलळै, खळभळ खळकै खाळ।
इण रो अंत न अेढो।
मन-माने री मंजलां-मारग टेढ़ो-मेढ़ो।।48।।
खळखोटा न्हायी धर-खोड़ां-राचै बाळू रेत।
बाजरियां नीलावै, बेलां-खिरै थळी रा खेत।
निपजै नाज निनाणां
खड़ियां रूखळै खेती, बळद्या बिकै बिनाणां।।49।।
धन-धन अे धोरां री धरती, ऊंची थारी आण!
सोसै समद, निरजळा सरसै, पुरसारथ रै पाण।
काया खजै न काळां।
मस्तक जस-नभ मूकै, पत रा पग पाताळां।।50।।
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