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मेघमाळ (6) / सुमेरसिंह शेखावत

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अळगा-थळगा रूंख उजाड़ां, थळी थरपिया थांम।
करहां-मजलां, काळी खोड़ंा, गिणती गमिया गांस।
बाकळ नीर बिराणो।
बादळियां बिन बरस्यां-सटै पगांथ-सिराणो।।51।।

बिसवै-बिसवै नाग बंजड़ां, बीघै-बीघै भूत।
डग-डग अठै पुजीजै डगळ्या। पग-पग पगल्या पूत।
बळ-बिसवास बोझळा।
बरसालै मरू बिससै, मेळा भर मोकळा।।52।।

बरसाती डेडरिया बांचै, खिल-खिल रूत री ख्यात।
बध-बध जाणै गाल बजावै, नेतावां री न्यात।
अंबर अधर उठावै।
संूई रातां सोपै-बिरखा टेर बुलावै।।53।।

तन-मन री तिस मरै तिसाया, अदना जीव अनेक।
बिसवासां री तिस बाबइयो, अंसुवां सरसै अेक।
लोपै लख चौरासी।
प्रीत तणै परभतां-बिलसै निरणो-बासी।।54।।

चातग थळ-जळ कदे न चाखै, कळपै च्यारूं कूंट।
अधर स्वास बोचै असमानां, ओगणगारी ऊंठ।
मोल बिकै मरजादा।
माथा देय मुलावै-जीवट रा जस-जादा।।55।।

हिये हेत रो समद हिलोरां, सांस-सांस में स्वात।
‘पिव-पिव’-री रट रसणा पुळकै,साल सईका स्यात।
सुण जळहर साखीणा,
बाबइया बिन बोल्यां-लाजै सुर लाखीणा!।।56।।

बिरखा रूत घन बीज बिहूणा, मरवण ज्यूं बिन मांग।
अंबर तणो मून अपरोघो, ऊंघै ऊटपटांग
अखरै घणी उदासी
मांझी नैं मझधारां-आवै जियां उबासी।।57।।

बिन बिरखा मरू-देस बिसाणो, कांठळ, लजा न कूख।
गरब-गरूर करै मर गूंगी, भुळै न दरस्यां भूख!
सरबस बार्या सरसी।
तिस रै समंदा तिरती, ‘बूढ़’ न जा बिन बरसी।।58।।

नभ-नद जळहर-सरवण नमिया, उर-घट भरण अजाण।
बायरियो-दसरथ तन बींधै, बेग झकोरां बांण
सबदां साध सलीकां।
मुरधर-धोरा-मायत-आघा मरै अडीकां।।59।।

मिरगलिया सा भरै चौकड्यां-भादूड़ै रा लोर।
छियां-तावड़ै री ल्हैरां उड-मिणै धरा रा छोर!
भाजी फिरै लगन सूं।
पिछवा चालै पून, न-बरसै छांट गगन सूं।।60।।
</poem>
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