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मेघमाळ (8) / सुमेरसिंह शेखावत

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<poem>
बोजां-बांठा री बणथळियां, बंजड़ बणिया बीड़।
ऊजड़-ओरण-उदक अड़ावा-भटक्या खाय भचीड़।
खोड़ां बणचर खाणा।
दिन धोळै दोपारां-डूंगर हुया डराणा।।71।।

भीणा हरियल बिरछ भाखरां- ऊलरिया अणथाग।
ऊनण छेक उभर नभ-ऊपर बणै अकासी बाग।
लागै अधर लगेड़ो।
नमियो जाणै नीचो-नन्दन-बन धर नेड़ो।।72।।

इन्द्र-धणख मंडियो असमानां, बहुरंगै बिसतार।
जाणै मनमथ काम जगावण-सतरंग रेखा सार
छिब-रति-रूप चितार्यो।
सुरंगा चीर सुरंगो, अथवा सची उसार्यो।।73।।

अणहद सूरज तपै आकरो, मंड-मंड मिटै मंडाण।
चाळा चाळ कर्यां चकमाळी-कांठळ, पड़े कुबाण।
दरपै घणौ न दाता।
मान घटै मनवारां, बण मन क्रमण बिधाता।।74।।

म्हैल-अटार्यां मत मंडरावै। लुबधा कांठल लोय।
रंगबाजां रै रोळां रमती नगरां नेह निचोय।
बिरथां चढ़ै बधारां।
लाज बोलियां लागै। बेस्या बणै बजारां।।75।।

कीरत सी छितराय, कुंडाळै-घाल्यो सूरज घेर।
आगम जळ-आसार उभरिया, पिरवाई रै फेर।
पो’रां पे’छा पड़िया।
अंबर अधर अटेरै-किरणां रा कूकड़िया।।76।।

सुबरण किरणां सांझ सिंदूरी, राती खितिजां रंह।
अरूणाभा राची घण-अंगां, मचसी मेहांमेह
सूण मिल्या सैनाणां।
लाजै रूत- लजवंती। तोरण तणिया ताणां।।77।।

भळहळ बीजळ पळकै-भळकै, उरसां आधूं आध।
काजळ घाल उघाड़ै कामण, सीप पलक री साध
सैण रिझावण सोपै ।
इण बिध कांठळ-अंगां-उपमा आ भल ओपै।।78।।

सजळायी पावस धणा-सेजां, रिमझिम अंसुवां रैण।
भावां खळकै बिरह-बाहळा, निरझर डाबर-नैण।
भीभळ तन-मन बणियां।
ष्उर-असमान-अंधारै-दमकै दुख-दामणियां।।79।।

रिमझिम जळ बरसावै जळहर, अंखियां अंसुवां धारं
घरां बिजोगण ना झुरंती, परदेसां भरतार।
बिरही जुगल बिचारा।
नभ में बैरण चपळा, मन में काम-कटारा।।80।।
</poem>
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