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|रचनाकार=सुमेरसिंह शेखावत
|संग्रह=मेघमाळ / सुमेरसिंह शेखावत
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<poem>
सिर पर भारो जोबर सा’रो, हसती-चाल हिंडोळ।
करसै री धण कामणगारी, लोयण-पलकां लोळ
लरजै पंथ लुभाती।
अेकलड़ी घर आवै-गीत प्रीत रा गाती।।91।।
तीतर-पंखी बादळियां रो-ओढ़ सुरंगो चीर।
आंथूणै अंबर में संज्या-खड़ी खितिज रै तीर
गति रा चरण बढ़ाई।
धरती देवै सीख, बिदा री बेळा आई।।92।।
चांदड़लो छिटकाय चांदणी-रीझै किरणां-रोम।
दूधां धोयो अंबर दीपै, भळहळ भळकै भोम।
मुरधर मोद मनावै।
पावस-रूत पुळकावण-आ पुळ कद-जद आवै।।93।।
पोयण-मेघ गगन-सर फूल्या, अरध ऊझळै अंस।
तारकदळ-मुगताहळ ताणी-हालै ससहर-हंस।
आळ करै इतरावै।
किरण-चोंच री केळां-हेरणहार हिरावै।।94।।
झीणों मकड़ी रै जाळै ज्यूं, अधर ऊनणां अंक।
कीट-पतंगां ज्यूं कसमसिया, मचळै नखत-मयंक,
उळभया अधबिच उरसां।
ओ द्रुपदा रो आंचळ-पैड़ां नपै न पुरसां।।95।।
अन-धन मांगणहार अघया, आयो मझ आसोज।
और कठै हळको करल्यो अे-बादळियां, थे बोज!
बीत्यो अब बरसाळो।
पाकी साख पिछाणो, रूत री रीत रूखाळो।।96।।
मरू-संबळ, जंगळ धर मंगळ, चंबळ चंचळधार।
बिकट मगां, द्रुतडगां बेग-बळ-विचरै वकराकार।
पाणी छळकै पाळां।
कळ-कळ री किलकार्या-उछळै फेण उताळां।।97।।
घोर अंधारी बरसाळै री-घुटै अमावस रैण।
बादळियां रै घूंघटिये में-ऊंघै नभ रा नैण।
ज्यूं बिरहण री आसा।
आखो लोक अमूजै, नाखै बाळ निसासा।।98।।
मान-मान ओ मन माणीगर, मत कर रूप-बखाण!
खेतड़लां में कमतरियां रा-करतब निरख अजाण।
बदल्यो आज जमानो
काम करण रै बगत-छेड़ मत प्रेम-तरानो।।99।।
भोर हुयो ल्यो प्राची पुळकै, मुळकै बाळू रेत।
करसो पड्यो खाअ में ऊंघै, चुगै चिड़कल्यां खेत।
लागी लगन चुगां री।
फेर धरा पसवाड़ो, जागै नींद जुगां री।।100।।
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सिर पर भारो जोबर सा’रो, हसती-चाल हिंडोळ।
करसै री धण कामणगारी, लोयण-पलकां लोळ
लरजै पंथ लुभाती।
अेकलड़ी घर आवै-गीत प्रीत रा गाती।।91।।
तीतर-पंखी बादळियां रो-ओढ़ सुरंगो चीर।
आंथूणै अंबर में संज्या-खड़ी खितिज रै तीर
गति रा चरण बढ़ाई।
धरती देवै सीख, बिदा री बेळा आई।।92।।
चांदड़लो छिटकाय चांदणी-रीझै किरणां-रोम।
दूधां धोयो अंबर दीपै, भळहळ भळकै भोम।
मुरधर मोद मनावै।
पावस-रूत पुळकावण-आ पुळ कद-जद आवै।।93।।
पोयण-मेघ गगन-सर फूल्या, अरध ऊझळै अंस।
तारकदळ-मुगताहळ ताणी-हालै ससहर-हंस।
आळ करै इतरावै।
किरण-चोंच री केळां-हेरणहार हिरावै।।94।।
झीणों मकड़ी रै जाळै ज्यूं, अधर ऊनणां अंक।
कीट-पतंगां ज्यूं कसमसिया, मचळै नखत-मयंक,
उळभया अधबिच उरसां।
ओ द्रुपदा रो आंचळ-पैड़ां नपै न पुरसां।।95।।
अन-धन मांगणहार अघया, आयो मझ आसोज।
और कठै हळको करल्यो अे-बादळियां, थे बोज!
बीत्यो अब बरसाळो।
पाकी साख पिछाणो, रूत री रीत रूखाळो।।96।।
मरू-संबळ, जंगळ धर मंगळ, चंबळ चंचळधार।
बिकट मगां, द्रुतडगां बेग-बळ-विचरै वकराकार।
पाणी छळकै पाळां।
कळ-कळ री किलकार्या-उछळै फेण उताळां।।97।।
घोर अंधारी बरसाळै री-घुटै अमावस रैण।
बादळियां रै घूंघटिये में-ऊंघै नभ रा नैण।
ज्यूं बिरहण री आसा।
आखो लोक अमूजै, नाखै बाळ निसासा।।98।।
मान-मान ओ मन माणीगर, मत कर रूप-बखाण!
खेतड़लां में कमतरियां रा-करतब निरख अजाण।
बदल्यो आज जमानो
काम करण रै बगत-छेड़ मत प्रेम-तरानो।।99।।
भोर हुयो ल्यो प्राची पुळकै, मुळकै बाळू रेत।
करसो पड्यो खाअ में ऊंघै, चुगै चिड़कल्यां खेत।
लागी लगन चुगां री।
फेर धरा पसवाड़ो, जागै नींद जुगां री।।100।।
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