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थारै पछै (1) / वासु आचार्य

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<poem>
क्या हुयौ
क्या नीं हुयौ
क्या सूं क्या हुयग्यौ

धरती पिघल‘र
बणगी दरियाव
छायगी सून च्यांरूमैर

बै सै ठौडा
जाणै ज्वालामुखी रै
धधकतै लावै मांय
भसम हुयगी

जठै कदै-कोई सुपनो
कोई ‘लैरियौ’
कोई ‘मोरियौ’
आपरै ई सुरताळ मांय
गूंजतौ हो
पून रा लैरका सागै
म्हैं जीवू तो हूं
बिया‘र बिया
लागण मांय ओई लागै
दीखण मांय भी
कीं नीं दीखै
सौ की सावळ‘ई लागै
पण म्हारो-ओ बगत
उबळतै तैल रै
कड़ाव सूं बतौ‘ई है
जिण मांय तिल तिल
बळतौ जाय रैयौ है
म्हारो रूं रूं

साची बात तो आ है-
क मनै ठा इ नीं
लाग रैई है
क कोई मुड़दो
जी रैयौ है -
म्हारै मांय
या कोई मुड़दै मांय म्हैं

थारै पछै
थारै पछै
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