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तू-तू नीं बदळै / वासु आचार्य

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<poem>
डील मांय डील
बदळै है डील
अर आखिरी बदळाव मांय
मर जावै - डील

फैर - तू
तू डील रो सिरजक
बी रै बदळाव रो
सौ टका जिमैदार
बीनै खाख करणियौ

कद कद
अर कित्ती कित्ती बार
बदळै है ?

जाणूं हूं - म्हैं
तू-तू नीं बदळै
तू जाणै है चौखीतरां
बदळण खातर
मरणौ पड़ै
तू थरपीज्यौड़ौ
पत्थर री चट्टाण ज्यूं
अणादिकाल सूं
अर अठै‘ई ज आय‘र तो
फैर मात खाय जावै तू

क म्हैं अेक डील
जिको बदळै भी है
मरै भी है
पण है चलायमान
चालतौ रैवै जिको
लगौलग-पाणी रै
अणथक बैवाव ज्यूं

अर तू
तू खाली मसळतौ रै जावै हाथ

म्हारा सिरजक
</poem>
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