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थार री पीड़ / वासु आचार्य

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<poem>
नीं तो-पून मांय पून
नीं ई तावड़ै जैड़ौ तावड़ौ

पून जैड़ी पून
तावड़ै जैड़ौ तावड़ौ
कइै आयौ गयौ हुयग्यौ लखावै

नीं ठा क्यूं
नीं छैड़ै मधरी राग
पंखैरू तक भी
कुण सी गैरी पीड़
सीड़ दी - बां री चूं चां

हां टप टप टपकै जरूर है
बां री राग
बां रो रस
आसुंआ रा टोपा ढळ
मुरझायै नैणा सूं

डंरूफरूं सौ
क्यूं रैवै है म्हारो थार
मायं रो मांय सीजतौ
अणदीठ अमूजौ लियौड़ौ
गूंगी मावड़िया ज्यूं
मुण्डै मून धार

अणमणा - कीं बौलणा चावतां थका भी
अणबौला‘ई रैय जावै
काळजां मांय लुकायै
आपरी पीड़ नै म्हारा धौरा
साव लागै
बां रै गिरिजियौड़ै‘ चै‘रा सूं

भरौसौ‘ई नीं रैयौ बां नै
कोई तौ सुणैला
दैखैला कोई
उकळता
उबळता
काळजा
आकळ बाकळ हुवता रूं रूं सूं

क्या है विधि रो विधान ?

क्या विधि रै विधान मांय
नीं है कोई ठौड़
जकी समझै
बां री भासा मांय
बां री पीड़
थार री पीड़
अर म्हारी भी
</poem>
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