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जद जद भी / वासु आचार्य

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<poem>
नीं ठा क्यूं हुवै
म्हारै सागै
घणी बार ईयां

क जद जद भी
खैत सुळगै
धुवौ म्हारै काळजै उठै
पगडाण्डयां माथै जणै कणै भी
पसरै है जैरीला नाग
जै‘र म्हारै रूं रूं छावै

झूंपड्या रै डोका सूं
झूंपड्या रा डौको‘ई चीथीजै
आपस मांय
आभै तळै हुय जाऊ
म्है मां जायौ जिस्यौ

चालती बसां-रैल्यां
हुय जावै
धमाका सूं लौवुलुवाण
अचाणचक
जीवता जागता चै‘रा
रगत सूं तरबतर
बदळे जावै लास्यां मांय
नुगरां हाथ्यां रा पग
चीथै म्हारो काळजो

जद जद भी इणीं तरा
जिकौ नी हुवणौ चाईजै बो हुवै
तद तद‘ई म्हैं जिणी तरां
नीं हुवणौ चाऊं
हुवतौ रैऊ
बैबस अर लाचार
खाली दांत भींचतौ
खाली मुठ्या ताणतौ
बदलण सारू - अै दीठाव

नीं ठा क्यूं
हुवै म्हारै सागै
घणी बार ईया जद जद भी ....
</poem>
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