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मौकळा दिनां पछै / वासु आचार्य

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मौकळा दिनां पाछै
कालै-गयौ थो बठीनै

लगै टगै वियार बिया है
बो रेत रो धौरौ
हां-पून रै तैज थपैड़ा सागे
उडी हुवैला जरूर-थोड़ी रेत
अर जमगी हुवैला
दूजी परत

पण इण सूं
कीं फरक नीं पड्यौ
टीबै मांय

आपां जिकै नीमड़ै रै तलै
बैठं-करतां हां बात्यां
बो बियांई है-हर्यौ भर्यौ
बीं रा पत्ता-
बियांई लै‘राय रैया था
पूर रै लैरका सागै
म्हे अेक पल‘ई
थम्यौ सायत्

दैख्यौ चारा खानी
सूरज डूबण‘नै ई थौ

कोई चीलख
कनै रै पड़े माथै
ऊपरी डाळां पत्ता बिचाळै
बैठगी ही फड़फड़ा‘र
आपरै घौंसलै मांय
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