भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatRajasthaniRachna}} <poem> घणी ......' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
घणी ....दूर सूं-गूँज गूँज आई
कानां रै असवाड़ै पसवाड़ै
परभाती री-मधरी मधरी धुण
अळसायै-अळसायै
खोल दी आँख्यां
खर्राटा भरतै जंगळ
जागग्यौ-सूतौ जंगळ
झिलमिलायै
नीलै ताळ रै तळे
अँजळीभर-रगतबरण
सौनलियो पुसब
खिलखिलाई-ठंडी मधरी पून
बैयगी फुदकती
चिड़कली ज्यूं
हरहराया-हिलौरा सूं
हर्भर्या पेड़
थिरकण लागग्या
लैर‘दार लैरिया-कैसरियां धौरा
न्हांयलियौ रूं रूं
लै‘र लै‘र लैरावती
गंगारी लैर्या सागै
लै‘र लैर‘....
लै‘र लै‘र...
आज रौ दनुगौ
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
घणी ....दूर सूं-गूँज गूँज आई
कानां रै असवाड़ै पसवाड़ै
परभाती री-मधरी मधरी धुण
अळसायै-अळसायै
खोल दी आँख्यां
खर्राटा भरतै जंगळ
जागग्यौ-सूतौ जंगळ
झिलमिलायै
नीलै ताळ रै तळे
अँजळीभर-रगतबरण
सौनलियो पुसब
खिलखिलाई-ठंडी मधरी पून
बैयगी फुदकती
चिड़कली ज्यूं
हरहराया-हिलौरा सूं
हर्भर्या पेड़
थिरकण लागग्या
लैर‘दार लैरिया-कैसरियां धौरा
न्हांयलियौ रूं रूं
लै‘र लै‘र लैरावती
गंगारी लैर्या सागै
लै‘र लैर‘....
लै‘र लै‘र...
आज रौ दनुगौ
</poem>