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महेश कटारे सुगम

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/* हिन्दी में ग़ज़लें */
* [[क्षितिज में ये सूरज का मंज़र तो देखो / महेश कटारे सुगम]]
* [[ज़ुल्म की चक्की में हमको पीसने का शुक्रिया / महेश कटारे सुगम]]
* [[ज़्यादा सहा कहँ कहाँ है थोड़ा यूँ भी निकले दौर बहुत / महेश कटारे सुगम]]
* [[जुल्म के तल्ख़ अन्धेरों के तलबगार हो तुम / महेश कटारे सुगम]]
* [[गोद में जिस वक्त आया लाल थोड़ी देर को / महेश कटारे सुगम]]
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