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Kavita Kosh से
पर हो न सकेगा अभिनन्दन मेरे इन कृत्रिम वर्णों में !
ये कृत्रिम, तू सत्-पृकृतिप्रकृति-रूप, हे पूर्ण-पुरातन तीर्थराज !
क्षमता दे, जिससे कर पाऊँ तेरा अनन्त गुण-गान आज !
मैं भी नरेन्द्र, पर इन्द्र नहीं, तेरा बन्दी हूँ, तीर्थराज !
क्षमता दे जिससे कर पाऊँ तेरा अन्न्त अनन्त गुण-गान आज !!
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