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<poem>
श्वेतवस्त्रावृता शारदा, ज्ञान दीं
एह नादान पर भी तनिक ध्यान दीं

घिर गइल बा अन्हारा में हर आदमी
ज्योति भीतर जला नीक पहचान दीं

काल के भाल पर धवल रौशनी
माँ, भरतभूमि के विश्‍व में मान दीं

स्वार्थ के ताप से मत तपे ई जगत्
त्याग के नीक चादर नवल तान दीं

हम गहीले चरन, शुद्ध हो आचरन
ज्ञान दीं, मान दीं, विज्ञ सन्तान दीं
</poem>
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