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<poem>
अतना गुमान काहे
जिनगी झँवान काहे

अँखिया झरे अनेरे
ई अर्ध्यदान काहे

कइले मिरी हमेशा
अफरा में प्रान काहे

जब आचरण सही ना
पवलऽ तू ज्ञान काहे

नजरो से देखला पर
अउरी प्रमान काहे

लिखिहें ‘पराग’ मन से
पइहें ना मान काहे
</poem>
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