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<poem>
ई बदरी छाई कबले
सूरूज छिप पाई कबले

लाठी के बल पर केहू
अनकर हक खाई कबले

बनल रही एह धरती पर
पर्वत आ खाई कबले

अपने घर हिन्दी माई
बनल रही दाई कबले

खून सहोदर भाई के
पियत रही भाई कबले
</poem>
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