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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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<poem>
दिया जरत बा त रौशनी बा
इहाँ कहाँ आज चाँदनी बा
मिटा रहल जे खपा के खुद के
उहे कलम के बनल धनी बा
सवाद बा तींत खा के देखीं
लगे अगर मीठ, चासनी बा
विकास होता, सुनीले रोजे
मगर जमीनी ना, कागजी बा
बची भरम आज आदमी के
बता सकी के, तनानी बा
‘पराग’ के गीत गुनगनाइल
न चाह रहलो प बेबसी बा
</poem>
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दिया जरत बा त रौशनी बा
इहाँ कहाँ आज चाँदनी बा
मिटा रहल जे खपा के खुद के
उहे कलम के बनल धनी बा
सवाद बा तींत खा के देखीं
लगे अगर मीठ, चासनी बा
विकास होता, सुनीले रोजे
मगर जमीनी ना, कागजी बा
बची भरम आज आदमी के
बता सकी के, तनानी बा
‘पराग’ के गीत गुनगनाइल
न चाह रहलो प बेबसी बा
</poem>