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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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<poem>
मौसम मुताबिक जहाँ आचरन बा
जीवन सुखी शान बा ज्ञान-धन बा
लाखे कमाके भरे सब तिजोरी
संतोष नाहीं त सुखवो सपन बा
जे-जे गरीबी में जिनगी बितवले
मुरझा रहल उनका मन के चमन बा
तूफान में रह कबो जे ना टूटे
ऊ धीर, ऊ वीर, ऊ नर-रतन बा
बनवास हो या मिले राजगद्दी
हँसले रहल राम के नित बदन बा
बेकार बाटे इहाँ चैन खोजल
जीवन समूचा जहाँ आज रन बा
खुद के खपा के सँवारे जगत के
ओकर ऋणी युग के हर धूल-कण बा
</poem>
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मौसम मुताबिक जहाँ आचरन बा
जीवन सुखी शान बा ज्ञान-धन बा
लाखे कमाके भरे सब तिजोरी
संतोष नाहीं त सुखवो सपन बा
जे-जे गरीबी में जिनगी बितवले
मुरझा रहल उनका मन के चमन बा
तूफान में रह कबो जे ना टूटे
ऊ धीर, ऊ वीर, ऊ नर-रतन बा
बनवास हो या मिले राजगद्दी
हँसले रहल राम के नित बदन बा
बेकार बाटे इहाँ चैन खोजल
जीवन समूचा जहाँ आज रन बा
खुद के खपा के सँवारे जगत के
ओकर ऋणी युग के हर धूल-कण बा
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