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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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<poem>
श्रेष्ठ कवि-बानि रहल
ओ के ना शानी रहल
मन के रेगिस्तान में
प्रेम बेपानी रहल
धूर्त लोगन के इहाँ
रोज बा चानी रहल
आज सेवा-भावना
व्यर्थ बेमानी रहल
लोग के नेकी कइल
हाय, नादानी रहल
कम पढ़ल पुरखा सभे
योग्य आ ज्ञानी रहल
</poem>
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श्रेष्ठ कवि-बानि रहल
ओ के ना शानी रहल
मन के रेगिस्तान में
प्रेम बेपानी रहल
धूर्त लोगन के इहाँ
रोज बा चानी रहल
आज सेवा-भावना
व्यर्थ बेमानी रहल
लोग के नेकी कइल
हाय, नादानी रहल
कम पढ़ल पुरखा सभे
योग्य आ ज्ञानी रहल
</poem>