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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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<poem>
व्यवहार आदमी के कतना बदल रहल बा
सब लोग मन के मालिक, सब लोग बेकहल बा
मरजाद बान्ह टूटल, सब नेह-नात छूटल
भगवान अब बँचावस, कइसन हवा बहल बा
मेटल गइल गरीबे, मेटल कहाँ गरीबी
चीत्कार झोपड़ी के सुन हँस रहल महल बा
घर में अनाज नइखे, कहवाँ मिली जलावन
चूअत पलानी सड़ के खर के बिना गिरल बा
कमजोर के लुगाई भउजाई गाँव भर के
बहुते विचार कर के, तब बात ई कहल बा
गाँवन का सादगी के चर्चा बहुत रहल हऽ
बाँचल कहाँ जहाँ अब नाहीं प्रपंच-छल बा
</poem>
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व्यवहार आदमी के कतना बदल रहल बा
सब लोग मन के मालिक, सब लोग बेकहल बा
मरजाद बान्ह टूटल, सब नेह-नात छूटल
भगवान अब बँचावस, कइसन हवा बहल बा
मेटल गइल गरीबे, मेटल कहाँ गरीबी
चीत्कार झोपड़ी के सुन हँस रहल महल बा
घर में अनाज नइखे, कहवाँ मिली जलावन
चूअत पलानी सड़ के खर के बिना गिरल बा
कमजोर के लुगाई भउजाई गाँव भर के
बहुते विचार कर के, तब बात ई कहल बा
गाँवन का सादगी के चर्चा बहुत रहल हऽ
बाँचल कहाँ जहाँ अब नाहीं प्रपंच-छल बा
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