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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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<poem>
आदमी के बन सकत बा काम से पहचान
काम से ही नाम होला, नाम से पहचान
आज बदलल लोग, आइल वक्त में बदलाव
काम के बदले मिलत बा दाम से पहचान
आचरन के कइल चर्चा भइल आज गुनाह
देवतो के तीर्थ-धामन से मिलत पहचान
भक्त आ भगवान में कतना निकट संपर्क
वीरवर हनुमान पवले राम से पहचान
शिष्टता-शालीनता में कवन खर्च ‘पराग’
नम्र जन के हात दण्ड-प्रनाम से पहचान
</poem>
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आदमी के बन सकत बा काम से पहचान
काम से ही नाम होला, नाम से पहचान
आज बदलल लोग, आइल वक्त में बदलाव
काम के बदले मिलत बा दाम से पहचान
आचरन के कइल चर्चा भइल आज गुनाह
देवतो के तीर्थ-धामन से मिलत पहचान
भक्त आ भगवान में कतना निकट संपर्क
वीरवर हनुमान पवले राम से पहचान
शिष्टता-शालीनता में कवन खर्च ‘पराग’
नम्र जन के हात दण्ड-प्रनाम से पहचान
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