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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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<poem>
आज के बाजार में हर चीज बाजारू भइल बा
माल गाँठिन में अगर बा मोल लेलीं जवन दिल बा
आबरू-ईमान सब धनवान के जागीर बाटे
के करत बा याद हमरा हाथ जे नेकी कइल बा
हो रहल धूमिल इहाँ विश्वास के ललकी किरिनियाँ
बा लगत इन्सान का भीतर के सूरूज ढल गइल बा
हो सकी पहचान कइसे देख ऊपर के सफाई
जान पावल बा कठिन, के साफ कतना भा मइल बा
नौजवानन में बढ़ल जाता निराशा के कुहासा
जल रहल रेती, पियासल बा हिरन ना प्राप्त जल बा
</poem>
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आज के बाजार में हर चीज बाजारू भइल बा
माल गाँठिन में अगर बा मोल लेलीं जवन दिल बा
आबरू-ईमान सब धनवान के जागीर बाटे
के करत बा याद हमरा हाथ जे नेकी कइल बा
हो रहल धूमिल इहाँ विश्वास के ललकी किरिनियाँ
बा लगत इन्सान का भीतर के सूरूज ढल गइल बा
हो सकी पहचान कइसे देख ऊपर के सफाई
जान पावल बा कठिन, के साफ कतना भा मइल बा
नौजवानन में बढ़ल जाता निराशा के कुहासा
जल रहल रेती, पियासल बा हिरन ना प्राप्त जल बा
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