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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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<poem>
छन-छन में अब लोगन के ईमान बदल जाता
देखत-देखत मन्दिर के भगवान बदल जाता
कइसे रात अन्हरिया भकसावन नाहीं लागे
चमचम चमकत अम्बर तक के चान बदल जाता
कुरसी पर बइठे के पहिले बात बहुत होता
मौका मिलते लोगन पर से ध्यान बदल जाता
भीतर-भीतर कीचड़ ऊपर से चन्दन गमके
दू कौड़ी के खातिर हर इन्सान बदल जाता
प्रेम-मुहब्बत पइसा-रूपया पर सब बेंच रहल
व्यापारी बन केकर ना मन-प्रान बदल जाता
बाप मजूरी करत थकल बा तन घिसिया-घिसिया
बेटा के देखीं कइसे सन्तान बदल जाता
</poem>
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छन-छन में अब लोगन के ईमान बदल जाता
देखत-देखत मन्दिर के भगवान बदल जाता
कइसे रात अन्हरिया भकसावन नाहीं लागे
चमचम चमकत अम्बर तक के चान बदल जाता
कुरसी पर बइठे के पहिले बात बहुत होता
मौका मिलते लोगन पर से ध्यान बदल जाता
भीतर-भीतर कीचड़ ऊपर से चन्दन गमके
दू कौड़ी के खातिर हर इन्सान बदल जाता
प्रेम-मुहब्बत पइसा-रूपया पर सब बेंच रहल
व्यापारी बन केकर ना मन-प्रान बदल जाता
बाप मजूरी करत थकल बा तन घिसिया-घिसिया
बेटा के देखीं कइसे सन्तान बदल जाता
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