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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
}}
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<poem>
जिन्दगी बन मोमबत्ती जल रहल
ताप से हर रोज तन बा गल रहल
लोग के दिल ठेठ रेगिस्तान बा
आसरा भ्रम में लगावल पल रहल
बात के एतबार से जल्दी बहुत
लोग डेगे-डेगे बाटे छल रहल
काम से अपने भुलाइल बा सभे
हर मुसाफिर मौज में बा चल रहल
पाँव पर जे खुद खड़ा ना हो सकल
आज तक बा हाथ आपन मल रहल
नेकदिल इन्सान भइलो बा बुरा
जान पवलीं देर से, ई खल रहल
</poem>
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जिन्दगी बन मोमबत्ती जल रहल
ताप से हर रोज तन बा गल रहल
लोग के दिल ठेठ रेगिस्तान बा
आसरा भ्रम में लगावल पल रहल
बात के एतबार से जल्दी बहुत
लोग डेगे-डेगे बाटे छल रहल
काम से अपने भुलाइल बा सभे
हर मुसाफिर मौज में बा चल रहल
पाँव पर जे खुद खड़ा ना हो सकल
आज तक बा हाथ आपन मल रहल
नेकदिल इन्सान भइलो बा बुरा
जान पवलीं देर से, ई खल रहल
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