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करूणा-निधे, यह करूणा करूण क्रन्दन भी ज़रा सुन लीजिये
कुछ भी दया हो चित्त में तो नाथ रक्षा कीजिये
हम मानते, हम है हैं अधम, दुष्कर्म के भी छात्र हैहैंहम है तुम्हरेतुम्हारे, इसलिये फिर भी दया के पात्र हैहैं
सुख में न तुमको याद करता, है मनुज की गति यही
संसार के इस सिन्धु में उठती तरंगे घोर हैं
तैसी कुहू की है निशा, कुछ सूझता नही नहीं छोर हैहैं
झंझट अनेकों प्रबल झंझा-सदृश है अति-वेग में
वह नाव मछली को खिलाने की प्रभो बंसी न हो
हे गुणाधार, तुम्हीं बने हो कर्णा वार कर्णधार विचार लो
है दूसरा अब कौन, जैसे बने नाथ ! सम्हार लो
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