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विनय / जयशंकर प्रसाद

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<poem>
बना लो हृदय-बीच निज धाम
करो हमको प्रभु पूरन-काम
शंका रहे न मन में नाथ
रहो हरदम तुम मेरे साथ
अभय दिखला दो अपना हाथ
न भूलें कभी तुम्हारा नाम
बना लो हृदय-बीच निज धाम

मिटा दो मन की मेरे पीर
धरा दो धर्मदेव अब धीर
पिला दो स्वच्छ प्रेममय नीर
बने मति सुन्दर लोक-ललाम
बना लो हृदय-बीच निज धाम

काट दो ये सारे दुःख द्वन्द्व
न आवे पास कभी छल-छन्द
मिलो अब आके आनँदकन्द
रहें तव पद में आठो याम
बना लो हृदय-बीच निज धाम
करो हमको प्रभु पूरन-काम
</poem>
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