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हमर लहास / प्रवीण काश्‍यप

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<poem>
हमरा सँ अहाँ किएक गप करब?
अहाँ किएक हमर दुख-व्यथा सुनब?
हम थिकहुँ थाकल पथिक हारल राेगी!
जल बिनु माछ-जकाँ छटपट करब?

हम थिकहुँ क्षण-क्षण अपनहि सँ अपना केँ
आगि लगबैत अपन क्रियाकर्म करैत
मुइल-सड़ल लहास!
अहाँ हमरा लेल कानब?
से किएक?

हम ने अहाँक कोखि सँ जन्म लेल,
ने हमरा अहाँ में अछि रक्तक संबंध!
हम ने थिकहुँ बात-विचार में पटु-कुशल;
जे कऽ सकी अहाँ केँ मयाजाल सँ आबद्ध!
तेँ की?

अहाँ मे अछि प्रेममय हृदय?
जाहि मे अपन माय-बाप, बेटा-बेटी,
अहाँक अपन लोक सँ,
बँचल किछु रिक्त स्थान?

एकात में बैसऽ देबय हेतु
किछु स्थान, थोड़बो मान?
तऽ अहाँ कानि सके छी,
कानब हमरा लेल,
हमर अस्थिरता पर, हमर नेनपन पर!
अहाँक कोंढ़ फाटत
हमर संघर्ष देखि कऽ!
अपन अस्तित्वक लेल
अपनहि अपन लहास केँ
अपन कान्ह पर रखने हम,
यत्र-तत्र दौगि रहल छी,
नाचि रहल छी,
महादेव बनि कऽ कानि रहल छी; कानब
अहाँ कानब?
</poem>
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