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कभी न / श्रीनाथ सिंह

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<poem>
कभी न रो रो आँख फुलाना,
कभी न मन में क्रोध बढ़ाना।
कभी न दिल से दया भुलाना,
कभी न सच्ची बात छिपाना।
कभी न बातों में चिढ़ जाना,
कभी न दुष्टों से भय खाना।
कभी न खाकर मित्र नहाना,
कभी न बासी खाना, खाना।
कभी न अति खा पेट फुलाना,
कभी न खाते ही सो जाना।
कभी न पढ़ने से घबराना,
कभी न तन में आलस लाना।
कभी न करना जरा बहाना,
कभी न बढ़ने पर इतराना।
कभी न मन में लालच लाना,
कभी न इतनी बात भुलाना।
</poem>